Tuesday, 15 November 2016

लम्हें !!!


हम उन लम्हों को कैसे भूल सकते हैं जिन लम्हों के कारण आज हमें शायद जीने की एक वजह मिली है।
वो लम्हें जो हमारे जीवन में शायद तब आएं थें जब हम तन्हाई के उस असीम समंदर में बेवजह बस तैरे जा रहे थें, जहाँ ना तो कोई किनारा था और नाही कोई वजह थी किनारे तक आने की। 
ये वही लम्हें थें जिन्हें जीने के बाद हमने उड़ना सीख लिया था। 
इन्ही लम्हों ने हमारे जीवन में एक नयी संगीत भर दी थी जिसकी धुन ने हमारी जुबां को सबका चहेता बना दिया था। 
हम उन लम्हों को कैसे भूल सकते हैं जिनके कारण हमने अपने ईश्वर को पाया, अपने ईश्वर को समझा।
जिन लम्हों ने हमारी आत्मा को एक अर्थ दिया हम आज उन्ही लम्हों को भूल कैसे सकते हैं।
हम शायद ये बात भूल गए के जो लम्हें बीत गए वो वापिस नहीं आएंगे। 
तो क्या वक़्त के साथ हम उन लम्हों को भी भुला दें?
शायद नहीं!!
हम उन लम्हों को वापिस तो नही ला सकते लेकिन उनको याद रखकर उन लम्हों का क़र्ज़ तो अदा कर ही सकते हैं। 
क्या पता जीवन के किसी मोड़ पे वो लम्हें फिर से हमें मिल जायें।
और एक बार फिर हम उनके संग उड़ने लगें।

Friday, 21 October 2016

सफलता...


एक विचार को पकड़ना, उसी विचार को अपना जीवन बना लेना,उसी के बारे में सोचना, उसी के सपने देखना, उसी विचार को जीना, अपने दिमाग, मांसपेशियों, और शरीर के हर हिस्से को उसी विचार में डूब जाने देना, और बाकी सभी विचारों को किनारे रख देना, यही सफल होने का तरीका है, यही सफलता का सूत्र है।

      

                                           - स्वामी विवेकानंद

Sunday, 9 October 2016

संपूर्णता...


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हम अक्सर अपने आस-पास कई ऐसे लोग देखते हैं जिन्हें हमारी जरुरत होती है लेकिन हम उन्हें एकदम से अनदेखा करते हुए निकल जाते हैं। जरा सोचिये! अगर हम में से हर कोई ऐसा ही करने लगे तो हमारे अच्छी स्थिति में होने का क्या मतलब जब हम अपने अच्छी स्थिति से दुसरो की कोई मदद ही ना कर पाएं।

हम तभी संपूर्ण होंगे जब हम अपनी संपूर्णता से जरूरतमंद की मदद करें वरना हम संपूर्ण तो होंगे लेकिन उसका कोई अर्थ नहीं होगा।

Saturday, 8 October 2016

अच्छे लोग...


अच्छे लोग भोजन में नमक की तरह होते हैं उनकी मौजूदगी का अहसास इतना नहीं होता पर गैर मौजूदगी सारे भोजन का स्वाद ख़राब कर देती है।
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ये एक कड़वा सत्य है के हम सभी अपने आस-पास मौजूद अच्छे लोगों की क़द्र नहीं करते जबकि वे हमेशा हमारी मदद करते हैं, सुख में दुःख में, हर परिस्थिति में साथ रहते हैं। हम उनका मोल समझ ही नहीं पाते हैं। लेकिन जैसे ही वो हमारे जीवन से दूर चले जाते हैं हमें उनकी अच्छाई का एहसास होने लगता है। हमें इस बात का एहसास हो जाता है के उनके बिना हमारा जीवन अधूरा है। 
अच्छे लोग भोजन में नमक की तरह होते हैं उनकी मौजूदगी का अहसास इतना नहीं होता पर गैर मौजूदगी सारे भोजन का स्वाद ख़राब कर देती है।
ये अच्छे लोग हमारे जीवन में किसी भी रूप में हो सकते हैं- माँ-बाप के रूप में या फिर भाई-बहन के रूप में, जीवनसाथी के रूप में या फिर दोस्त के रूप में।

ये अच्छे लोग हमारे जीवन से चले जाये, उस दिन का इन्तेज़ार ना करें बल्कि इन्हें वो सम्मान और प्रेम दें जिनके ये हक़दार हैं। 
हालाकिं ये ऐसा कुछ की उम्मीद नहीं रखते क्योंकि बिना हम से कुछ लिए भी ये हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा ये अबतक करते आये हैं क्योंकि ये लेन-देन से पड़े होते हैं।

बस हमे इस बात का अफ़सोस इनके चले जाने के बाद ना हो  के हम इन्हें वो नहीं दे पाये जो इन्हें मिलना चाहिए था।

Friday, 7 October 2016

Three Golden Rules of Life...


Three Golden Rules of Life...

जो आपकी सहायता कर रहा है उसे कभी न भूले I

जो आपको प्यार कर रहा है उससे नफरत न करे I

जो आप पर विश्वास कर रहा है उसको धोखा न दे I
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Who is Helping You, Don’t Forget them.

Who is Loving you, Don’t Hate them .

Who is Believing you, Don’t Cheat them.


                                            - स्‍वामी विवेकानंद

Thursday, 6 October 2016

तसल्ली...


ऐ जिंदगी ख़त्म कर अब ये तमाशा,
मैं थक गया हूँ दिल को तसल्लियाँ देते देते।


निंदा...


       
                          किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
          Condemn none: if you can stretch out a helping hand, do so. If you cannot, fold your hands, bless your brothers, and let them go their own way.
                                 
                                              -Swami Vivekananda

Wednesday, 5 October 2016

संस्कार...


जब एक शिशु जन्म लेता है तब वह कुछ संस्कार अपने पिछले जन्म से लेकर निश्चित ही आता है लेकिन बाकि के संस्कार वो यँहा आने के बाद पाता है, कुछ संस्कार तो उसे अपने जन्मदाता से जन्मजात मिलता है, कुछ संस्कार उसके माता-पिता देते हैं, कुछ उसके आस-पास का वातावरण उसको देता है लेकिन कुछ संस्कार ऐसे होते हैं जो वो खुद सीखता है या पाता है अपने जीवन से। 
और जीवन से सीखा हुआ संस्कार ही शायद जीवन में बुरी परिस्थितियों से लड़ना सिखाता है।


Tuesday, 4 October 2016

Sacrifice...


दो दिल आसानी से एक नहीं हो सकतें क्योंकि दोनों ही दिलों में एक दूसरे के लिए कोई जगह नहीं होती। ये जगह तो हमें, एक दूसरे से मिलने के बाद एक दूसरे के लिए बनानी पड़ती है ।
दोनों ही दिल अपनी-अपनी जगह पर अपनी ज़िन्दग़ी से जुड़ी सबसे खास चीज को sacrifice करते हैं तब जाकर दोनों दिलों में थोड़ी जगह बनती है जँहा दोनों दिल एक दूसरे को जगह दे पाते हैं।

और ये sacrifices हम कोई सोच समझकर नहीं करते वो तो खुद-व-खुद हो जाता है।

बस थोड़ा ध्यान और इत्मिनान से सोचिये के हमने किसी को दिल में जगह देने के लिए क्या sacrifices किये हैं? और ऐसा ही कोई sacrifice सामने वाले ने भी किया है।

Saturday, 1 October 2016

हम तन्हा नहीं होते जब हम तन्हा होते हैं...


हम तन्हा नहीं होते जब हम तन्हा होते हैं...

अक्सर हम जब अकेले होते हैं तब हम ये सोच कर निराश हो जाते हैं के हम बिल्कुल अकेले हैं, हमारे साथ कोई नहीं है लेकिन अगर हम अपनी तन्हाई को ही अपना साथी बना लें तो हम फिर शायद अकेले नहीं रह जायेंगे।

हमारे जीवन की खुशियों में तो हर कोई शामिल हो जाता है लेकिन जब दुःख की बाड़ी आती है तो उस समय तन्हाई के अलावा और कोई नहीं होता हमारे साथ।

हमारे जीवन में हर कोई हमारा साथ छोड़ कर जा सकता है लेकिन हमारी तन्हाई हमेशा हमारे साथ साथ रहेगी।

इसलिए मुझे लगता है, हमें अपनी तन्हाई से भागना नहीं चाहिए बल्कि उसे अपना हमसफ़र, हमकदम, हमराज़ बना लेना चाहिए, ये हमें कभी निराश नहीं करेगा।


Sunday, 18 September 2016

माँ ...

माँ ...
ईश्वर की बनायी एक अद्भुत रचना जिसे रचने के बाद स्वयं ईश्वर भी उनके मोह से बच नहीं पाएं। 

हमारा वज़ूद, हमारा अस्तित्व, हमारी पहचान 
ये सभी हमारी माँ के वजह से होता है।

सिर्फ हमारे वज़ूद को इस दुनिया में लाने के लिए हमारी माँ कितने कष्ट सहती है। हमारे अस्तित्व को एक पहचान देती है। और इन सब के लिए वो अपना स्वरूप अपना सौंदर्य तक खो देती है।
उसके लिए हमारी खुशियाँ उसकी खुशियों से पहले होता है। उसका हर सपना केवल हमसे जुड़ा होता है।
रातों को जागना, दिन भर बेचैन रहना ये उसकी दिनचर्या हो जाती है। उसके होठों पे हमारे नाम के शिवा कुछ और कहाँ रह जाता है। 
वो खाना तो हमें खिलाती है लेकिन भूख उसकी ख़त्म होती है। 
वो सुलाती तो हमें है लेकिन नींद उसकी पूरी होती है।
एग्जाम हमारा होता है और टेंसन उसे होती है।
सफलता हमें मिलती है और दुनिया वो जीत जाती है।

हमारे जीवन में ना जाने कितने तरह के किरदार वो निभाती है और वो भी केवल हमारे लिए।
कभी दोस्त बन कर हमारी हर समस्या को सुनती है तो कभी बहन बन कर हमें पापा की डाँट से बचाती है।
कभी एक भाई बनकर हमारी सुरक्षा ढाल बन जाती है तो कभी नानी और दादी बनकर हमें अपना तजुर्वा दे जाती है।

ये होती है माँ । 
हम चाह के भी कभी इनका कर्ज़ नहीं उतार सकते।
हम कितने भी बड़े क्यों ना बन जाएँ चाहे उम्र से या फिर हैसियत से, हम अपनी माँ के लिए हमेशा छोटे ही रहेंगे, हम उनके लिए एक बच्चे ही रहेंगे।
और माँ भी हमें वैसे ही प्रेम करती रहेगी जितना उस दिन की थी जिस दिन हम पहली बार उसके जीवन में आये थें। 

हम ही मुर्ख होते हैं, नासमझ होते हैं जो ईश्वर के सामने होते हुए भी मंदिरो में उसे ढूंढने चले जाते हैं।

क्या ईश्वर एक माँ से भिन्न हो सकता है??
नहीं ! कभी नहीं।

फिर भी हम में से शायद ही कोई होगा जिसने अपनी माँ को शुक्रिया कहा होगा। शायद ही कोई होगा जो हर दिन ईश्वर से पहले अपनी माँ के चरण स्पर्श करता होगा।

हम सभी अपनी माँ को शुक्रिया बोलने के लिए एक दिन का इंतज़ार करते हैं और अगले ही दिन माँ को फिर भूल जाते हैं।

हालांकि ये शुक्रिया कहने वाली बात नहीं है और नाही हमारी माँ को ये चाहिए होता है।
अगर हम हर दिन अपनी माँ को गले से लगा लें तो वो समझ जायेगी। अगर कभी कभी हम अपनी माँ की गोद में सर रख के सोएं तो उसे ज्यादा ख़ुशी होगी।
यकीन मानिये जो शुकुन आपको मिलेगा शायद दुनिया की कोई भी दौलत वो शुकुन और शांति नहीं दिला सकती है।


Thursday, 8 September 2016

वक़्त...


जिस तरह वक़्त हमें बीच समंदर के लहरों से 
किनारे पे ला सकता है उसी तरह वक़्त हमें किनारे से बीच समंदर में भी पहुंचा सकता है।

इसलिए हमें खुद को कभी भी ताक़तवर नहीं समझना चाहिए क्योंकि वक़्त से ज्यादा ताक़तवर कोई भी नहीं होता।

Tuesday, 30 August 2016

प्रार्थना...


ईश्वर की प्रार्थना का अर्थ ये कभी नहीं हो सकता है के...हम कुछ सब्दों या पंक्तियों को केवल दोहराएं।
बल्कि प्रार्थना का अर्थ ये हो सकता है के...या तो हम उन शब्दों तथा पंक्तियों का अर्थ समझ कर शांत चित्त से अपने ईश्वर को याद करें, या फिर... बिना कुछ कहे
बस ह्रदय से अपने ईश्वर को याद कर लें।
क्योंकि हमें अपने ईश्वर से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होती। एक वही तो है जो हमारे बारे में सब जानता है।

Monday, 29 August 2016

शब्द...


हमें अपने शब्दों को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए, अपनी आवाज़ को नहीं।

हमें अपने शब्दों को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए, अपनी आवाज़ को नहीं। 
बेशक़ हम अपनी आवाज़ को बढ़ा कर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं लेकिन ये आकर्षण
थोड़े देर के लिए ही होगा। 
लेकिन अगर हम अपने शब्दों को बढ़ाते हैं तो ये शब्द हमें एक पहचान देती है। एक ऐसी पहचान जो हमारे इस दुनिया में ना रहने पर भी लोगों की यादों में हमेशा ही ज़िंदा रहेगी।

Sunday, 28 August 2016

जीवन...


एक राजा एक फुलवारी बनवाना चाहता था। वो एक ऐसी फुलवारी बनवाना चाहता था जो हर तरह से संपूर्ण हो और कोई भी जब उसे देखे तो देखता ही रह जाये। फुलवारी बनवाने के लिए राजा ने पूरी दुनिया से सर्वश्रेष्ठ लोगों को बुलवाया।
सर्वश्रेष्ठ लोगों में से भी सर्वश्रेष्ठ को चुन कर राजा ने फुलवारी बनवानी शुरू की।
लोगों ने दिन रात मेहनत कर राजा की इच्छानुसार फुलवारी बना दी।
 जब राजा ने फुलवारी देखी तो राजा फुलवारी को देखते ही रह गए । फुलवारी को देख ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं ब्रह्म ने अपने हाथों से इसका निर्माण किया हो। फूलों को देख ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति खुद इनके साथ खेल रही हो। फुलवारी को देख स्वर्ग का एहसास हो रहा था।
लेकिन राजा संतुष्ट नहीं थे। उन्हें कुछ तो कमी लग रही थी। राजा को समझ नहीं आ रहा था की वो कमी क्या है।
राजा ने दुनिया के विद्वानों को बुलाया और उनसे फुलवारी की कमी के बारे में पूछा लेकिन सभी फुलवारी को देख मंत्रमुग्ध थें। उनमे से किसी को भी फुलवारी में किसी कमी का पता नहीं चल पाया। कोई भी नहीं समझ पा रहा था की राजा को क्या कमी लग रही है।
तभी फुलवारी की तरफ से एक गरीब आदमी जा रहा था। राजा ने उस गरीब से पूछा के बताओ- "क्या तुम्हें इस फुलवारी में कोई कमी का एहसास हो रहा है?"
गरीब ने गौर से फुलवारी को देखा और कुछ देर शांत रहने के बाद बोला- " हे ! राजन् । इस फुलवारी में कुछ  सूखे हुए पत्तों की कमी है, कुछ मुरझाये हुए फूलों की कमी है।"
राजा समझ चुके थें के उनकी फुलवारी निःसंदेह बहुत सुंदर है मगर संपूर्ण नहीं है।

यही तो जीवन है जो सुख और दुःख के मिलने से बनती है। अगर हमारे जीवन में केवल सुख हो तो हम तकलीफ को कभी समझ ही नहीं पाएंगे
और अगर सुख सम्पन्नता के साथ साथ हम दुःख, कमी और तकलीफ को नहीं जियें तो शायद हम जीवन की सम्पूर्णता को कभी समझ ही ना पाएं।

Wednesday, 17 August 2016

सलाह...


इंसान जितनी सहजता  से सलाह देता है उतनी सहजता से और कुछ नहीं दे पाता।
                                          - रोचेफ़ोकोल्ड

ये एक हास्यास्पद बात है के हम किसी को भी आसानी से सलाह दे देते हैं लेकिन बात जब मदद की आती है तो उतनी ही आसानी से पीछे हट जाते हैं।
दरअसल हम जो भी हों, जैसे भी हों, जहाँ कहीं भी हो, जिस भी स्थिति में हों, किसी को सलाह देने की स्थिति में जरूर होते हैं और इसके लिए हमेशा तत्पर भी होते हैं। और कमाल की बात तो ये है कि कभी कभी हम बिना मांगे भी सलाह दे देते हैं या यूँ कहें कि हम अक्सर बिना मांगे ही सलाह दे डालते हैं।

एक बार एक चाय की दुकान पे कुछ लोग बैठ कर चाय पी रहे थें और साथ ही देश की अर्थब्यबस्था पर चर्चा भी कर रहे थें। वहाँ बैठे सभी लोग देश के प्रधानमंत्री को सलाह दे रहे थें के उनको देश के लिए क्या क्या करना चाहिए और कैसे कैसे करना चाहिए। तभी दुकान में लगे रेडियो में देश के प्रधानमंत्री का संदेश आने लगा। प्रधानमंत्री जी ने सभी देशवासीयो से अपील की के देश की तरक्की तभी सम्भव है जब हम सभी सही समय पे सही टैक्स पूरी ईमानदारी से सरकार को दें। 
इतना सुनते ही वहाँ बैठे सभी लोग चुप चाप उठे और वहाँ से निकल गए।
कुछ देर पहले जितनी सहजता से सभी प्रधानमंत्री जी को मुफ़्त की सलाह दे रहे थें उतनी ही सहजता से सभी उनके अपील को अनसुना कर दिए।

Saturday, 16 July 2016

असफलता में छिपी सफलता...

"हम असफल हैं इसका ये अर्थ नहीं है के हमारे में काबिलियत की कमी है बल्कि हम काबिल हैं तभी तो हम बार बार प्रयास कर रहें हैं।"

अक्सर हमारी असफलता को हमारी काबिलियत से जोड़ कर देखा जाता है जो की बिलकुल गलत है। 
अगर काबिलियत असफलता से परखी जा सकती तो दुनिया में कोई भी आविष्कार संभव ही नहीं हो पाता क्योँकि कोई भी आविष्कार ना जाने कितनी ही असफल प्रयासो के बाद ही संभव हो पाया।

एक छात्र गणीत का एक सवाल हल करने का प्रयास कर रहा था लेकिन हर बार हल गलत आ रहा था
वो छात्र दिन से रात और रात से सुबह तक निरंतर प्रयास करता रह गया लेकिन उसे हर प्रयास में असफलता ही हाथ लगी। जब वह अपने विद्यालय पहुंचा तब उसके शिक्षक ने उससे पूछा के क्या सवाल हल हुआ ? छात्र ने कहा नहीं । तब शिक्षक ने एक दूसरे छात्र को वही सवाल हल करने को कहा उस छात्र ने सवाल सभी के सामने हल कर दिया।

हमारी नज़र में वो छात्र जिसने दिन रात प्रयास किया एक असफल इंसान था।
जबकि जिसने एक ही प्रयास में हल निकाला वो एक सफल इंसान था।
लेकिन.....
जरा सोचिये क्या हमारा ये निष्कर्ष सही है ???
सफल छात्र ने एक बार में हल तो निकाला लेकिन क्या वो कुछ सीख पाया ???
लेकिन असफल छात्र ने दिन और रात सौ प्रयास किये और उसने ये सीखा के उस सवाल को इस सौ तरह से हल नहीं किया जा सकता।
तो निष्कर्ष ये निकलना चाहिए के वो छात्र असफल हो कर भी सफल है ।
अगर हमारी राह सही है और हम उस राह पर ईमानदारी से चल रहे हैं और फिर भी हम असफल हैं तो एक बात तो पक्की है के हमारी काबिलियत सफल लोगों से कहीं ज्यादा है। क्योंकि हर असफलता हमे कुछ ना कुछ सीखा कर ही जाती है।

Monday, 11 July 2016

खुशी


एक बार कुछ बच्चे खेल रहे थें । वहीं बगल में एक पेड़ के निचे महात्मा बुद्ध अपनी आँखे बंद कर ध्यान में बैठे थें। 
बच्चे पेड़ पर लगे फल को पत्थर मार कर तोड़ने की कोशीश कर रहें थें। तभी एक पत्थर छिटक कर महात्मा बुद्ध को लग गया। बच्चे ये देख डर से रोने लगे। जब बुद्ध ने अपनी आँखें खोलीं और देखा के बच्चे रो रहें हैं तो बुद्ध ने बच्चों से रोने का कारण पूछा। बच्चे भयबीत थें और कुछ बोल नहीं पा रहें थें
बुद्ध ने कहा- "डरो मत कहो क्यों रो रहे हो?"
बच्चों ने डरते हुए कहा के "हमने आपको पत्थर मारा है आपको चोट लगी है अब आप हमें सजा देंगे।"
तब महात्मा बुद्ध के आँखों में भी आँशु आ गए।
तब बच्चों महात्मा बुद्ध से पूछा के " आप क्यों रोने लगे?"
तब बुद्ध ने कहा-" ये पेड़ तुम्हे फल दे रहा है जिससे तुम्हारे चहरे पे ख़ुशी आ रही है और एक मै हूँ जो तुम्हे डर और भय के अलावा कुछ भी नहीं दे पा रहा हूँ। मुझ से भला तो ये पेड़ है तुमलोगों के लिए।

हम सभी महात्मा बुद्ध की तरह तो नहीं सोच सकते।
परंतु.....
क्या हम उस पेड़ की तरह नहीं बन सकते जो पत्थर खा कर, चोट खा कर भी लोगो को फल दे रहा था, लोगों के चेहरे पे ख़ुशी ला रहा था।

Sunday, 10 July 2016

कोशिश...


हम अक्सर अपनी असफलता से हताश होकर बैठ जाते हैं और कोशिश करना ही छोड़ देते हैं।
जबकि हमें हारकर बैठने के बजाए उठकर फिर से कोशिश करनी चाहिए।

एक चिड़ियाँ जब अपना घोंसला बनाती है तो उसके सामने कई परेशानियां होती हैं। तेज़ हवा का झोंका, तेज बारिश, तेज धुप ये सभी चिड़ियाँ की हिम्मत को तोड़ देती हैं और उसको असफलता की ओर धक्का दे देती हैं। लेकिन चिड़ियाँ हार नहीं मानती वो हर असफलता के बाद फिर से उठ खड़ी होती है और फिर से खुद को तैयार कर एक नयी कोशिश करती है।
और ये कोशिश तबतक चलती है जब तक चिरियाँ का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता ।
अंततः सभी मुश्किलों को चिड़ियाँ के हौसले के आगे नतमस्तक होना पड़ता है और चिड़ियाँ सफल होती है।
अगर वो हार के बैठ जाती तो कभी भी अपना आशियाना नहीं बना पाती।
हम सभी को चिड़ियाँ के हौसले से सीख लेनी चाहिए।

Tuesday, 5 July 2016

ख्वाब...


जब हम अपने ख्वाब को पूरा करने निकलते हैं
तो रास्ते में हमे कोई ऐसा मिल जाता है जो हमें हमारे सपने से भी ज्यादा अच्छा लगने लगता है। 
और फिर हमारे जीवन का मकसद ही बदल जाता है।
जिस राह हमे जाना होता है उसे छोड़ हम उस हसीं ख्वाब को पाने के लिए उस राह की ओर चल परते हैं। बिना ये सोचे के क्या वो राह सही है या नहीं ? बिना ये सोचे के क्या वो ख्वाब वो सपना पूरा होगा या नहीं ?
रस्ते में भले ही कितनी कठिनाई क्योँ ना आ जाये हम वो रास्ता नहीं छोड़ते।
जो भी हो, मगर उस रस्ते जाना बड़ा मज़ेदार होता है।
शायद दुनिया की हर ख़ुशी उस ख्वाब के लिए, उस रस्ते के लिए कुर्वान ।
क्या सही है, क्या गलत नहीं पता ।
मगर एक बार उस राह पे चलकर उस ख्वाब को पूरा करने की कोशिश करने में कुछ गलत नहीं लगता चाहे भले वो ख्वाब हक़ीक़त हो या नहीं।

आँसू...

आँसू...एक ऐसा हमसफ़र जो हमेशा साथ निभाता है।
आँसू...एक ऐसा दोस्त जो हर ग़म में साथ रहता है।
हर ख़ुशी में हमारे साथ होता है भले हमारे साथ खुशियाँ मनाने वाला कोई ना हो।
हर ग़म में, हर दुःख में हमारे साथ खरा रहता है।
सारे रिश्ते झुटे साबित हो जाते हैं, सारे हाँथ छूट जाते हैं लेकिन हमारे आँसू कभी हमारा साथ नहीं छोड़ते।
आँसू... वो आईना होता है जहाँ सब कुछ साफ साफ नज़र आ जाता है। 
हमारी सच्चाई,
हमारी ईमानदारी,
हमारी मासूमियत,
हमारी शरारत,
हमारा दर्द,
हमारी खुशियाँ,
हमारा प्रेम
हमारे आँखों से बस आँसुओ को छलकने भर की देर होती है, हम कितना भी खुद को छुपाते रहें मगर हमारे जज़्बात, हमारी भावनाएं आँसुओ संग नज़र आ ही जाते हैं।
लेकिन फिर भी हम कभी कभी इन आँसुओ को झूट और नौटंकी समझ लेते हैं। 
दरअसल शायद हम उन आँसुओ की भाषा समझ ही नहीं पाते।
कहीं ना कंही हमारे अंदर संवेदना की कमी होती है
क्योंकि आँसुओ में feelings और sentiment होता है और अगर हमारे अंदर इनकी ही कमी हो तो किसी के आँसुओ को हम क्या समझ पाएंगे।
खैर...हमारे साथ हमें शायद हम से भी ज्यादा समझने वाला हमारा दोस्त, हमसफ़र हमारे आँसू काफी है।
जब ये साथ हैं तो फिर हमें किसी और कंधे की क्या जरुरत है....

Wednesday, 29 June 2016

Bhuk...




अगर कभी भूख का एहसास करना हो तो इन बच्चों को देख शायद हमे भूख क्या होती है एहसास हो जाये।

हम अक्सर अपनी परेशानियों के लिए ईश्वर को और भाग्य को कोसने लगते हैं।
तो अगर हमारे पास कुछ कम है सोचिये तो इन बच्चों के पास कितना कम है ।

क्या हम केवल इसलिए इस दुनिया में आऐ हैं के हम अपनी ही परेशानियों में उलझे रहें ?

क्या हम इन बच्चों के लिए एक उम्मीद नहीं बन सकते ?
अगर हाँ
तो आइये एक उम्मीद बन कर इन जैसे बच्चों की भूख मिटाने की एक कोशिश करें।

यकीन मानिये हमे अपनी परेशानी कम लगने लगेगी
और हमे भी मील जायेगी जीवन जीने की एक नयी
उम्मीद............👍👍








Monday, 27 June 2016

क्या हम एक चींटी से भी छोटे हैं ?




इन चींटियों ने तो केवल शरीर को ही खाया मगर हम तो इस शरीर की आत्मा को खा बैठे।
क्या हमे नहीं लगता के हम इन चींटियों से भी छोटे हो गए ।
                  क्या हम केवल अपना अपना फ़र्ज़ ही नीभा कर
इस बच्चे के लिए एक उम्मीद नहीं बन सकते थें ।