एक बार कुछ बच्चे खेल रहे थें । वहीं बगल में एक पेड़ के निचे महात्मा बुद्ध अपनी आँखे बंद कर ध्यान में बैठे थें।
बच्चे पेड़ पर लगे फल को पत्थर मार कर तोड़ने की कोशीश कर रहें थें। तभी एक पत्थर छिटक कर महात्मा बुद्ध को लग गया। बच्चे ये देख डर से रोने लगे। जब बुद्ध ने अपनी आँखें खोलीं और देखा के बच्चे रो रहें हैं तो बुद्ध ने बच्चों से रोने का कारण पूछा। बच्चे भयबीत थें और कुछ बोल नहीं पा रहें थें
बुद्ध ने कहा- "डरो मत कहो क्यों रो रहे हो?"
बच्चों ने डरते हुए कहा के "हमने आपको पत्थर मारा है आपको चोट लगी है अब आप हमें सजा देंगे।"
तब महात्मा बुद्ध के आँखों में भी आँशु आ गए।
तब बच्चों महात्मा बुद्ध से पूछा के " आप क्यों रोने लगे?"
तब बुद्ध ने कहा-" ये पेड़ तुम्हे फल दे रहा है जिससे तुम्हारे चहरे पे ख़ुशी आ रही है और एक मै हूँ जो तुम्हे डर और भय के अलावा कुछ भी नहीं दे पा रहा हूँ। मुझ से भला तो ये पेड़ है तुमलोगों के लिए।
हम सभी महात्मा बुद्ध की तरह तो नहीं सोच सकते।
परंतु.....
क्या हम उस पेड़ की तरह नहीं बन सकते जो पत्थर खा कर, चोट खा कर भी लोगो को फल दे रहा था, लोगों के चेहरे पे ख़ुशी ला रहा था।

Its true....
ReplyDeleteवृझ से तो खुशी मिलती है लेकिन आज हम सच मैं इन्सान से डरने लगे हैं।