एक राजा एक फुलवारी बनवाना चाहता था। वो एक ऐसी फुलवारी बनवाना चाहता था जो हर तरह से संपूर्ण हो और कोई भी जब उसे देखे तो देखता ही रह जाये। फुलवारी बनवाने के लिए राजा ने पूरी दुनिया से सर्वश्रेष्ठ लोगों को बुलवाया।
सर्वश्रेष्ठ लोगों में से भी सर्वश्रेष्ठ को चुन कर राजा ने फुलवारी बनवानी शुरू की।
लोगों ने दिन रात मेहनत कर राजा की इच्छानुसार फुलवारी बना दी।
जब राजा ने फुलवारी देखी तो राजा फुलवारी को देखते ही रह गए । फुलवारी को देख ऐसा लग रहा था जैसे स्वयं ब्रह्म ने अपने हाथों से इसका निर्माण किया हो। फूलों को देख ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति खुद इनके साथ खेल रही हो। फुलवारी को देख स्वर्ग का एहसास हो रहा था।
लेकिन राजा संतुष्ट नहीं थे। उन्हें कुछ तो कमी लग रही थी। राजा को समझ नहीं आ रहा था की वो कमी क्या है।
राजा ने दुनिया के विद्वानों को बुलाया और उनसे फुलवारी की कमी के बारे में पूछा लेकिन सभी फुलवारी को देख मंत्रमुग्ध थें। उनमे से किसी को भी फुलवारी में किसी कमी का पता नहीं चल पाया। कोई भी नहीं समझ पा रहा था की राजा को क्या कमी लग रही है।
तभी फुलवारी की तरफ से एक गरीब आदमी जा रहा था। राजा ने उस गरीब से पूछा के बताओ- "क्या तुम्हें इस फुलवारी में कोई कमी का एहसास हो रहा है?"
गरीब ने गौर से फुलवारी को देखा और कुछ देर शांत रहने के बाद बोला- " हे ! राजन् । इस फुलवारी में कुछ सूखे हुए पत्तों की कमी है, कुछ मुरझाये हुए फूलों की कमी है।"
राजा समझ चुके थें के उनकी फुलवारी निःसंदेह बहुत सुंदर है मगर संपूर्ण नहीं है।
यही तो जीवन है जो सुख और दुःख के मिलने से बनती है। अगर हमारे जीवन में केवल सुख हो तो हम तकलीफ को कभी समझ ही नहीं पाएंगे
और अगर सुख सम्पन्नता के साथ साथ हम दुःख, कमी और तकलीफ को नहीं जियें तो शायद हम जीवन की सम्पूर्णता को कभी समझ ही ना पाएं।