Sunday, 18 September 2016

माँ ...

माँ ...
ईश्वर की बनायी एक अद्भुत रचना जिसे रचने के बाद स्वयं ईश्वर भी उनके मोह से बच नहीं पाएं। 

हमारा वज़ूद, हमारा अस्तित्व, हमारी पहचान 
ये सभी हमारी माँ के वजह से होता है।

सिर्फ हमारे वज़ूद को इस दुनिया में लाने के लिए हमारी माँ कितने कष्ट सहती है। हमारे अस्तित्व को एक पहचान देती है। और इन सब के लिए वो अपना स्वरूप अपना सौंदर्य तक खो देती है।
उसके लिए हमारी खुशियाँ उसकी खुशियों से पहले होता है। उसका हर सपना केवल हमसे जुड़ा होता है।
रातों को जागना, दिन भर बेचैन रहना ये उसकी दिनचर्या हो जाती है। उसके होठों पे हमारे नाम के शिवा कुछ और कहाँ रह जाता है। 
वो खाना तो हमें खिलाती है लेकिन भूख उसकी ख़त्म होती है। 
वो सुलाती तो हमें है लेकिन नींद उसकी पूरी होती है।
एग्जाम हमारा होता है और टेंसन उसे होती है।
सफलता हमें मिलती है और दुनिया वो जीत जाती है।

हमारे जीवन में ना जाने कितने तरह के किरदार वो निभाती है और वो भी केवल हमारे लिए।
कभी दोस्त बन कर हमारी हर समस्या को सुनती है तो कभी बहन बन कर हमें पापा की डाँट से बचाती है।
कभी एक भाई बनकर हमारी सुरक्षा ढाल बन जाती है तो कभी नानी और दादी बनकर हमें अपना तजुर्वा दे जाती है।

ये होती है माँ । 
हम चाह के भी कभी इनका कर्ज़ नहीं उतार सकते।
हम कितने भी बड़े क्यों ना बन जाएँ चाहे उम्र से या फिर हैसियत से, हम अपनी माँ के लिए हमेशा छोटे ही रहेंगे, हम उनके लिए एक बच्चे ही रहेंगे।
और माँ भी हमें वैसे ही प्रेम करती रहेगी जितना उस दिन की थी जिस दिन हम पहली बार उसके जीवन में आये थें। 

हम ही मुर्ख होते हैं, नासमझ होते हैं जो ईश्वर के सामने होते हुए भी मंदिरो में उसे ढूंढने चले जाते हैं।

क्या ईश्वर एक माँ से भिन्न हो सकता है??
नहीं ! कभी नहीं।

फिर भी हम में से शायद ही कोई होगा जिसने अपनी माँ को शुक्रिया कहा होगा। शायद ही कोई होगा जो हर दिन ईश्वर से पहले अपनी माँ के चरण स्पर्श करता होगा।

हम सभी अपनी माँ को शुक्रिया बोलने के लिए एक दिन का इंतज़ार करते हैं और अगले ही दिन माँ को फिर भूल जाते हैं।

हालांकि ये शुक्रिया कहने वाली बात नहीं है और नाही हमारी माँ को ये चाहिए होता है।
अगर हम हर दिन अपनी माँ को गले से लगा लें तो वो समझ जायेगी। अगर कभी कभी हम अपनी माँ की गोद में सर रख के सोएं तो उसे ज्यादा ख़ुशी होगी।
यकीन मानिये जो शुकुन आपको मिलेगा शायद दुनिया की कोई भी दौलत वो शुकुन और शांति नहीं दिला सकती है।


Thursday, 8 September 2016

वक़्त...


जिस तरह वक़्त हमें बीच समंदर के लहरों से 
किनारे पे ला सकता है उसी तरह वक़्त हमें किनारे से बीच समंदर में भी पहुंचा सकता है।

इसलिए हमें खुद को कभी भी ताक़तवर नहीं समझना चाहिए क्योंकि वक़्त से ज्यादा ताक़तवर कोई भी नहीं होता।