हम उन लम्हों को कैसे भूल सकते हैं जिन लम्हों के कारण आज हमें शायद जीने की एक वजह मिली है।
वो लम्हें जो हमारे जीवन में शायद तब आएं थें जब हम तन्हाई के उस असीम समंदर में बेवजह बस तैरे जा रहे थें, जहाँ ना तो कोई किनारा था और नाही कोई वजह थी किनारे तक आने की।
ये वही लम्हें थें जिन्हें जीने के बाद हमने उड़ना सीख लिया था।
इन्ही लम्हों ने हमारे जीवन में एक नयी संगीत भर दी थी जिसकी धुन ने हमारी जुबां को सबका चहेता बना दिया था।
हम उन लम्हों को कैसे भूल सकते हैं जिनके कारण हमने अपने ईश्वर को पाया, अपने ईश्वर को समझा।
जिन लम्हों ने हमारी आत्मा को एक अर्थ दिया हम आज उन्ही लम्हों को भूल कैसे सकते हैं।
हम शायद ये बात भूल गए के जो लम्हें बीत गए वो वापिस नहीं आएंगे।
तो क्या वक़्त के साथ हम उन लम्हों को भी भुला दें?
शायद नहीं!!
हम उन लम्हों को वापिस तो नही ला सकते लेकिन उनको याद रखकर उन लम्हों का क़र्ज़ तो अदा कर ही सकते हैं।
क्या पता जीवन के किसी मोड़ पे वो लम्हें फिर से हमें मिल जायें।
और एक बार फिर हम उनके संग उड़ने लगें।
